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Showing posts from July, 2007
ना छेड़ो मेरे गम को इस तरह , एक चिंगारी अभी बाक़ी है। जख्म तो भर गया है मगर, ये दाग अभी बाक़ी है। फूलों का काँटों से वास्ता इतना, जब तक ये पराग अभी बाक़ी है न कर गम ए दोस्त!बहारों का, जख्म पुराने है दर्द अभी बाक़ी है। ज़िन्दगी का जाम तड़क कर टूट गया, मौत की हंसी अभी बाक़ी है। ए दोस्त !दामन भरा रहे तेरा फूले से, यही दुआ अकेली अभी बाकी है........ पूनम अग्रवाल.......

सरकता रहा चांद चुपके से रात भर

सरकता रहा चांद चुपके से रात भर, फिजा में खामोशी सी बिखर गई, गजब सा सुकून चांद देता रहा रात भर। तार छिड़ भी गए -नग्मे बिखर भी गए, महकता रहा आंगन चुपके से रात भर। सरकता रहा चांद चुपके से रात भर..... बिंदिया चमक भी गयी ,पायल खनक भी गयी, बिखरता रहा गजरा चुपके से रात भर। चूड़ी खनक भी गयी ,अरमान मचल भी गए, लहराता रहा आँचल चुपके से रात भर। सरकता रहा चांद चुपके से रात भर...... पलके उठ भी गयी,पलके गिर भी गयी , बहकता रहा जाम चुपके से रात भर। दिए जल भी गए ,दिए बुझ भी गए, सिमटता रहा तिमिर चुपके से रात भर। सरकता रहा चांद चुपके से रात भर..... पूनम अग्रवाल ....

सजल जल

नभ में जल है, जल में जल है, थल में जल है। ये कैसी विडम्बना ? तरसे मानव जल को है। भीगा तन है,भीगा मन है, सूखे होंठ -गला रुन्धा सा। हर नयन मगर सजल है...... पूनम अग्रवाल

नवदीप

शीशे का एक महल तुम्हारा, शीशे का एक महल हमारा. फिर पत्थर क्यों हाथों में आओ मिल बैठें , ना घात करें । प्रीत भरें बीतें लम्हों को , नवदीप जलाकर याद करें ......

जीवन क्या है ?

जीवन क्या है ? एक मेला है। दुःख -सुख का एक रेला है । दुःख सागर , सुख सपना है। दुःख - सागर के तुम बनना तुम सफल गोताखोर . डूब गए तो न नयन भिगोना, भीग गये तो न करना मलाल। मोका मिल है ,मोती चुराना सागर के। फिर बढाना हाथ अपना . सर्वप्रथम जो थामेगा हाथ तुम्हारा , समझना वही है हकदार , मोती की गागर के... जीवन क्या है? एक मेला है। दुःख-सुख का एक रेला है। सुख सपना जब होगा साकार , किसी चीज का ना होगा आकार । सपने को न तुम सच समझ लेना भीड़ से दबे -सबको न अपना समझ लेना। सपना बड़ा सुहाता है , झूम -झूमकर लुभाता है। सपने तो पर सपने है , ये कभी ना अपने है। सपने में सब लगते है अपने , धूप भी कोमल लगती है । पतझड़ भी सावन लगता है, नींद गहरी और गहरी हुई जाती है। नींद से जागोगे ,तो जानोगे तुम , ये तो थे सिर्फ सपने ,मीठे सपने........ - पूनम अग्रवाल

मिलन

चांद खड़ा है द्वारे पर , तारों की बारात लिए । अम्बर ने अपने आंगन में , सजा लिए हैं अरबों दिए। खिल उठी चांदनी शर्मा कर , मेघों का घूँघट किये । माथे पर हैचांद की बिंदिया , दिल में हैं अरमान लिए। माला थामे नयन झुकाकर , सिमटी है शृंगार किये। गीतों को गूंजित कर डाला, अधरों को चुप चाप सिये । सितारों की माला गुथ डाली, चल पडी मिलन है आज प्रिये ! पूनम की है रात प्रिये, मिलन है आज प्रिये !!!!..... -पूनम अग्रवाल

गवाही

अम्बर के आंगन मे तारों के झुरमुट में, क्या चांद गवाही देगा ? कहाँ छुपी है माँ मेरी ? अश्रु के सैलाब में , नींद की खुमार में, क्या स्वप्न गवाही देगा? कहाँ छुपी है माँ मेरी ?

चलो आज किसी रोते को हंसयाजाये

चलो आज किसी रोते को हन्सायाजाये नम आंखों की नमी को सुखाया जाये । छोटी सी ख़ुशी में तुम हंसी ढूंढ़ लेना , ना करना इन्तजार बड़ी सी ख़ुशी का उमर यूँही बीत जायेगी पलक झपकते , बड़ी ख़ुशी क्या पता कल आये ना आये । चलो आज किसी रोते को हन्सायाजाये नम आंखों की नमी को सुखाया जाये । संघर्षों से दबी जा रही है जिन्दगी इन्सान की , इन्सान को तुम शैतान से न मिलने देना उमड़ पड़ेगा प्यार टूटेंगे सब बन्धन , इन्सान को इंसानियत से मिलाया जाये । चलो आज किसी रोते को हन्सायाजाये नम आंखों की नमी को सुखाया जाये । गीत वो गाओ जो प्यार से सराबोर हो, मीत से ऐसे मिलो कि नयी भोर हो जीवन हर्षोल्लास से भर जाएगा , दुःख को सुख से मिलाया जाये । चलो आज किसी रोते को हन्सायाजाये नम आंखों की नमी को सुखाया जाये । - पूनम अग्रवाल

सकारात्मकता - The height of positivity

फूल बोला शूल से - मत हो उदास इस बात पर कि तू नहीं किसी को भाता है मुझे पता है -तू है सतत प्रहरी उसका जो तेरा जीवनदाता है । मेरा क्या है -एक हवा के झोके से बिखर जाऊंगा , किसी जुडे में सज जाऊंगा , भगवान् के चरणों में चढ़ जाऊंगा , किसी शव पर न्योछावर हो जाऊंगा मेरे भाग्य का कुछ नहीं पता पर तुम साथी दुःख के हो पतझड़ का मौसम आयेगा , पत्ते भी झड़ जाएँगे , तुम अटल -अडिग रक्षा करोगे शाख की समझे ना समझे कोई इसे पर बात है ये लाख की ...... पूनम अग्रवाल

सहरा सा लगता है

घड़ी की सुई चल रही है , समय क्यों ठहरा सा लगता है। पाबन्दी कोई नहीं है फिर, हरदम क्यों पहरा सा लगता है। चीख -चीख कर बोल रही हूँ , हर मानव क्यों बहरा सा लगता है। चुल्लू भर पानी देखूं तो , मुझे क्यों गहरा सा लगता है। आंगन मैं खड़ा ताड़ का पेड , मुझे क्यों लहरा सा लगता है । तारों के झुरमुट के पीछे , चांद का टुकडा आज मुझे क्यों सहरा सा लगता है.... पूनम अग्रवाल

पिंघल जायेगी उमर

आंगन में उजालो को बिखर जाने दो, पिंघल जायेगी उमर मॉम की तरह। लम्हों को फिसल कर संभल जाने दो, उतर जायेगी गले में सोम की तरह। रिश्तों में कटुता को सिमट जाने दो, बिखर जायेगी धरा पर व्योम की तरह। खुली हवा में पंखों को पसर जाने दो, लिपट जायेगी अनल में होम की तरह। आँचल में सितारों को समां जाने दो, ॐ हो जायेगी इक दिन ओऊम की तरह। - पूनम अग्रवाल

सुकून

दूर कहीँ चिड़ियों का झुंड, सौ - सौ हजारों चिड़ियों का झुंड, मैं जहाँ हूँ वहाँ से वे उडती हुई नहीं तैरती सी दिखती हैं सांझ के धुंधले आसमान के नीचे , कितना सुकून देता है इनको इनका तैरना इस तरफ इन्सान है साथ साथ नहीं चल सकते दो इन्सान , दो कदम भी सुख से. . .. पूनम अग्रवाल