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Ishq Nasha Sharab Poetry,

Kash hamein bhi koi samajhny wala hota
To aaj ham itny na samajh na hoty,

Kash koi ishq ka jaam pilany wala hota
To aaj ham bhi is sharab ky deewany na hoty.

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प्रभु तुम मेरे मन की जानो ( Prabhu Tum Mere Man Ki Jano) - सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan)

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स्वदेश प्रेम (Swadesh Prem) - रामनरेश त्रिपाठी (Ramnaresh Tripathi)

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बीती विभावरी जाग री ( Biti Vibhavri Jag Ri ) - जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad)

बीती विभावरी जाग री! अम्बर पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा नागरी! खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा किसलय का अंचल डोल रहा लो यह लतिका भी भर ला‌ई- मधु मुकुल नवल रस गागरी अधरों में राग अमंद पिए अलकों में मलयज बंद किए तू अब तक सो‌ई है आली आँखों में भरे विहाग री!