गुजरात में मकर संक्रान्ती के दिन पतंग - महोत्सव की अति महत्ता है। दिन के उजाले में आकाश रंगीन पतंगों से भर जाता है। अँधेरा होते ही पतंग की डोर में तुक्कल बांध कर उडाया जाता है। जो उड़ते हुए सितारों जैसे लगते है। उड़ती हुयी तुक्कल मन मोह लेने वाला द्रश्य उत्पन्न करती है। इस द्रश्य को मैंने कुछ इस तरह शब्दों में पिरोया है.........
कारवाँ है ये दीयों का,
कि तारे टिमटिमाते हुए।
चल पड़े गगन में दूर ,
बिखरा रहे है नूर।
उनका यही है कहना ,
हे पवन ! तुम मंद बहना ।
आज है होड़ हमारे मन में ,
मचलेंगी शोखियाँ गगन में।
आसमानी सितारों को दिखाना,
चाँद को है आज रिझाना।
पतंग है हमारी सारथी,
उतारें गगन की आरती।
हम है जमीनी सितारे,
कहते है हमे 'तुक्कल' ........
पूनम अग्रवाल ....
कारवाँ है ये दीयों का,
कि तारे टिमटिमाते हुए।
चल पड़े गगन में दूर ,
बिखरा रहे है नूर।
उनका यही है कहना ,
हे पवन ! तुम मंद बहना ।
आज है होड़ हमारे मन में ,
मचलेंगी शोखियाँ गगन में।
आसमानी सितारों को दिखाना,
चाँद को है आज रिझाना।
पतंग है हमारी सारथी,
उतारें गगन की आरती।
हम है जमीनी सितारे,
कहते है हमे 'तुक्कल' ........
पूनम अग्रवाल ....
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