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Showing posts from 2009

एक नजारा

ट्रेन के डस्टबिन के पास मैले -कुचेले फटेहाल वस्त्रों से अपना तन ढकती , गोद में स्केलेटन सा बिलखता बच्चा थामे , डालती है अपना हाथ डस्टबिन में वो । कचरे के बीच बचे -खुचे खाने से भरी एक थाली ले आती है चमक उसकी आँखों में। इसपर भी चखती अपनी उंगली से बची-खुची दही-रायता। फ़िर भरती है बिनी हुई कटोरियों में वोही झूठन .... शायद घर पर बीमार बूढी माँ के लिए है वो सब । रोते बच्चे को सूखे स्तन से लगाती है जबरन । बटोरकर आशा ट्रेन से उतर जाती है अगले पड़ाव पर । वाह रे भारत देश ! भारत की ये भारती ! पूनम अग्रवाल ......

छलने लगे है....

महक रही है फिजा कुछ इस तरह, खुली पलकों में तसव्वुर अब पलने लगे है। पिंघल रही है चांदनी कुछ इस तरह , ख्याल तेरे गज़लों में अब ढलने लगे है। उभर रही है आंधियां कुछ इस तरह, सवाल मेरे लबों पर अब जलने लगे है। मचल रहे है बादल कुछ इस तरह, जलते सूरज के इरादे अब टलने लगे है। छलक रहे है सीप से मोत्ती कुछ इस तरह , मीन को सागर में वो अब खलने लगे है। बढ़ रही है तन्हाईयाँ कुछ इस तरह, कदम मुड़कर तेरी तरफ़ अब चलने लगे है। उतर रही है मय कुछ इस तरह, हम ख़ुद-बखुद ही ख़ुद को छलने लगे है॥ पूनम अग्रवाल ........

दस्तक आ गयी है......

क्यूँ छिटकी है चांदनी आसमां पर..... क्यूँ बिखरे है रंग जमीं पर..... क्यूँ हवाओं में ताजगी सी है .... लगता है कहीं से बहार आ गयी है। । क्यूँ ताजगी सी है हवाओं पर .... क्यूँ बिछी है नजरें राहों पर.... क्यूँ इन्तजार की इन्तहां हो गयी है.... लगता है बेमोसम बरसात आ गयी है॥ क्यूँ गुनगुनाहट सी है सांसों में.... क्यूँ तान छिडी है साजों में...... क्यूँ जुबान खामोश सी है..... लगता है मिलन की बात आ गयी है॥ क्यूँ महकते ही पत्ते शाखों पर ..... क्यूँ लहराती है जुल्फें शानो पर..... क्यूँ छलकता है दिल हरदम ..... लगता है तेरे आने की दस्तक आ गयी है॥ पूनम अग्रवाल .....

A renowned chef of Fortune Landmark cooked in my kitchen and a local newspaper covered it

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जिन्दगी

बाहों में हो फूल सदा , ये जरूरी तो नही । काँटों का दर्द भी , कभी तो सहना होगा। राहों में छाव हो सदा, ये जरूरी तो नहीं। धुप की चुभन में, कभी तो रहना होगा । हंसी खिलती रहे सदा , ये जरूरी तो नहीं। पलकों पर जमे अश्को को, कभी तो बहना होगा। हर पल रहे खुशनुमा सदा, ये जरूरी तो नहीं, थम सी गयी है जिन्दगी, कभी तो कहना होगा। पूनम अग्रवाल.......

तुक्कल ....(ज़मीनी सितारे)

गुजरात में मकर संक्रान्ती के दिन पतंग - महोत्सव की अति महत्ता है। दिन के उजाले में आकाश रंगीन पतंगों से भर जाता है। अँधेरा होते ही पतंग की डोर में तुक्कल बांध कर उडाया जाता है। जो उड़ते हुए सितारों जैसे लगते है। उड़ती हुयी तुक्कल मन मोह लेने वाला द्रश्य उत्पन्न करती है। इस द्रश्य को मैंने कुछ इस तरह शब्दों में पिरोया है......... कारवाँ है ये दीयों का, कि तारे टिमटिमाते हुए। चल पड़े गगन में दूर , बिखरा रहे है नूर। उनका यही है कहना , हे पवन ! तुम मंद बहना । आज है होड़ हमारे मन में , मचलेंगी शोखियाँ गगन में। आसमानी सितारों को दिखाना, चाँद को है आज रिझाना। पतंग है हमारी सारथी, उतारें गगन की आरती। हम है जमीनी सितारे, कहते है हमे 'तुक्कल' ........ पूनम अग्रवाल ....