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बुलंद होसले


हाल ही मे स्पिन अकेडमी द्वारा आयोजित एक डांस शो देखने का अवसर मिला । मुंबई की ये संस्था जो हमारे शहर में आयी और कई स्कूल के ५००-५५० बच्चो को चुनकर उन्हें मात्र १५ दिनों के अंदर उन्हें डांस शो के लिए तैयार कर दिया । डांस शो तो बहुत से देखे है लेकिन इस शो में कुछ अलग ही बात थी ,जो मैं लिखने के लिए मजबूर हो गयी हूँ।

अलग इसलिए क्यूंकि इसमे एक डांस-परफॉर्मेंस नेत्रहीन बच्चो की थी । जब ये बच्चे मंच पर आए तो इन्हे क्या पता था कि उन्हें कितने लोग देख रहे है । तालियों की गडगडाहट से पूरा प्रांगन गूंज उठा ।उन्हें अहसास करवाया गया कि तुम मस्त होकर नाचो , हम इतने सारे लोग तुम्हारे होसलो को बढ़ाने के लिए तुम्हारे साथ है। वे एक अंग से अक्षम बच्चे मस्ती से झूम रहे थे। उन्हें देखकर अक्षम और सक्षम बच्चो में अंतर कर पाना मुश्किल था । उनमे सक्षम बच्चो को मात देने का होसला जो था। उन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ तालियों की गडगडाहट का अहसास था। वे बच्चे कही से भी अक्षम नही थे ,उनके होसले जो बुलंद थे।

कई लोग तो बीच में ही खड़े होकर उनका तालियों से होसला बढ़ा रहे थे। जब उनकी डांस-परफॉर्मेंस समाप्त हुई तो उनके सम्मान में लोगो ने दोबारा अपनी कुर्सी से उठकर ढेर सारी तालियों से उनका स्वागत किया । उस समय उन बच्चो की शक्ल पर खुशी, आत्मसम्मान और संतोष के भावः साफ़ झलक रहे थे मानो कह रहे हो -हम किसी से कम नहीं । फ्लाईंग -किस देते हुए बच्चे मंच छोड़ रहे थे। साथ ही हमारे दिलों को भी साथ ले जा रहे थे। अपनी एकअमित छाप हम सबपर छोडकर ......

पूरा वातावरण तालियों की गडगडाहट से गूंज रहा था। दिल को छू लेने वाली इस परफॉर्मेंस को देखकर मेरी ऑंखें खुशी और कहीं रंज से नम थी। दिल पर एक बोझ था कि भगवन ने इन मासूमों के साथ कहीं न कहीं तो नाइंसाफी कर ही दी है। लेकिन उनकी हिम्मत और होसलें को देखकर मन को झटक दिया कि इन मासूमों ने तो भगवान् को भी हराकर रख दिया है......

कौन कहता है मंजिल मिल नही सकती
खुदा भी ख़ुद चलकर आयेगा गर होसले बुलंद हों........

पूनम अग्रवाल ......

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