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Showing posts from December, 2008

देती हूँ कोख श्रष्टा को भी ......

मै कोई बदली तो नहीं , बरस जाऊँ किसी आँगन में । घटा हूँ घनेरी, बुझाती हूँ तृष्णा तपती धरती की ....... मै कोई जलधार तो नहीं, बिखर जाऊँ कहीं धरा पर । सागर हूँ अपार, छिपाती हूँ धरोहर निज गहराई में...... मै कोई आँचल तो नहीं, ढक लूँ झूमते हुए उपवन को। रजनी हूँ पूनम, निभाती हूँ नई सुबह जीवन की...... मै कोई किरण तो नहीं, सिमट जाऊँ किसी मन में। चांदनी हूँ धवल, समाती हूँ अन्धकार के जीवन में...... मैं कोई श्रष्टा तो नहीं, कर दूँ निर्माण श्रृष्टि का। श्रष्टि हूँ सम्पूर्ण , देती हूँ कोख श्रष्टा को भी...... पूनम अग्रवाल........

बुलंद होसले

हाल ही मे स्पिन अकेडमी द्वारा आयोजित एक डांस शो देखने का अवसर मिला । मुंबई की ये संस्था जो हमारे शहर में आयी और कई स्कूल के ५००-५५० बच्चो को चुनकर उन्हें मात्र १५ दिनों के अंदर उन्हें डांस शो के लिए तैयार कर दिया । डांस शो तो बहुत से देखे है लेकिन इस शो में कुछ अलग ही बात थी ,जो मैं लिखने के लिए मजबूर हो गयी हूँ। अलग इसलिए क्यूंकि इसमे एक डांस-परफॉर्मेंस नेत्रहीन बच्चो की थी । जब ये बच्चे मंच पर आए तो इन्हे क्या पता था कि उन्हें कितने लोग देख रहे है । तालियों की गडगडाहट से पूरा प्रांगन गूंज उठा ।उन्हें अहसास करवाया गया कि तुम मस्त होकर नाचो , हम इतने सारे लोग तुम्हारे होसलो को बढ़ाने के लिए तुम्हारे साथ है। वे एक अंग से अक्षम बच्चे मस्ती से झूम रहे थे। उन्हें देखकर अक्षम और सक्षम बच्चो में अंतर कर पाना मुश्किल था । उनमे सक्षम बच्चो को मात देने का होसला जो था। उन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ तालियों की गडगडाहट का अहसास था। वे बच्चे कही से भी अक्षम नही थे ,उनके होसले जो बुलंद थे। कई लोग तो बीच में ही खड़े होकर उनका तालियों से होसला बढ़ा रहे थे। जब उनकी डांस-परफॉर्मेंस समाप्त हुई तो उनके सम्मान में

मन तो है कवि मेरा.......

मन तो है कवि मेरा, शब्द कहीं गुम हो गए थे। पाया साथ तुम्हारा फ़िर , क्यूँ हम गुमसुम से हो गए थे। शब्दों के इस ताने बने में, था क्यूँ उलझा मन। बन श्याम तुम खड़े थे पथपर, फ़िर क्यूँ शब्द हुआ थे गुम । सांसों के इस आने -जाने में था क्यूँ सिमटा तन। बन सावन तुम बरस रहे थे, फ़िर क्यूँ शुब्ध हुआ था मन॥ मन तो है कवि मेरा, शब्द कहीं गुम हो गए थे। पूनम अग्रवाल .........

कुछ शेरो- शायेरी

आसमां के नजारों में तुम्हे पाया है, चमन के सितारों में तुम्हे पाया है। अफ़साने कुछ इस कदर बदले मेरे, जिधर देखू उधर तुम्हे ही पाया है॥ ------------- तसव्वुर में भी अश्क उभरे है जब कभी, पलकों से मेरी उन्हें तुमने चुरा लिया। यादों के गहरे साए ने घेरा है जब कभी, सदा देकर तुमने मुझको बुला लिया॥ ------------------ अब और क्या मांगूं मैं खुदा से, तेरा प्यार मिला दुनिया मिल गयी। सदा साथ तेरा युही बना रहे, मांगने को यही दूआ हमे मिल गयी॥ ।-------------------- तुम्हे गैरों से कब फुर्सत , हम अपने गम से कब खाली । चलो अब हो गया मिलना, न तुम खाली न हम खाली। पूनम अग्रवाल .......

दो प्रेमी मिलते है ऐसे.......

नजरों से नजरे मिली है ऐसे, नवदीप जले हो चमन में जैसे। मन में हलचल मची है ऐसे, सागरमें मंथन हो जैसे। अधरों से अधर मिले है ऐसे, गीतों से सुर मिले हों जैसे। माथे पर बुँदे छलके है ऐसे , जलनिधि से मोत्ती हों जैसे। आलिंगन में बंधे है ऐसे, कमल में भ्रमर बंद हो जैसे। मदहोशी है नयन में ऐसे, बात खास कुछ पवन मैं जैसे। बाँहों के घेरे है ऐसे, पंख पसारे हों नभ ने जैसे। शब्द मूक कुछ हुऐ है ऐसे, दिल में घडकन बजी हो जैसे। प्रेम-रस यूँ छलके है ऐसे, समुद्र -मंथन में अमृत हो जैसे। दो प्रेमी मिलते है ऐसे, तान छिडी हो गगन में जैसे । पूनम अग्रवाल .....