नभ में जल है, थल में जल है, जल में जल है। कैसी ये विडंबना ? तरसे मानव जल को है। भीगा तन है, भीगा मन है, सूखे होंठ - गला रुंधा सा। हर नयन मगर सजल है..... पूनम अग्रवाल....
छोड़ देते हैं मस्तियों को, नादानियों को नहीं देखते उन सपनों को जो सूरज और चांद को छूने का दिलासा दिलाते हैं दबा ...