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Showing posts from August, 2008

कहर कोसी का "सजल जल"

नभ में जल है, थल में जल है, जल में जल है। कैसी ये विडंबना ? तरसे मानव जल को है। भीगा तन है, भीगा मन है, सूखे होंठ - गला रुंधा सा। हर नयन मगर सजल है..... पूनम अग्रवाल....
बिखर गया कोई मेघ गगन पर, नई-नई सूरत ढली ....... बिखर गया कोई दर्पण धरा पर, सूरत वही दिशा बदली ॥

स्वप्न

स्वप्न यहाँ पलकों पर , सजा करते है। साकार हो जाता है , जब स्वप्न कोई। दिन बदल जाते है, रातें बदल जाती है। बिखर जाता है, जब स्वप्न कोई । तब भी---- दिन बदल जाते है, रातें बदल जाती है। अश्क उभर आते है, दोनों ही सूरतों में। फर्क बस है इतना- कभी ये सुख के होते है । कभी ये दुःख के होते है। स्वप्न यहाँ पलकों पर, सजा करते है ..... पूनम अग्रवाल ....

' निर्वाण '

सर्वत्र हो तुम , सर्वस्व भी तुम। रचना हो तुम , रचनाकार भी तुम। सर्जन हो तुम, स्रजन्हारभी तुम। मारक हो तुम , तारक भी तुम। स्रष्टी हो तुम, श्रष्टा भी तुम। दृष्टी हो तुम, दृष्टा भी तुम। मुक्ती हो तुम , 'निर्वाण' भी तुम।