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Main tu Aashiq hun deewana na banana mujhko


Kachi dewaar hun Thokar na lagana mujhko
Apni nazaron me Basa kr na girana mujhko
Tumko ankhon me tasavvur ki tarh rakhta hun
Dil me dhadkan ki tarh tum B basana mujhko
Baat karne me jo mushkil ho tumhe mahafil me
Main samajh jaoga nazron se batana mujhko
Waada utana hi kro jitna nibha sakte ho
Khvab pura jo na ho vo na dikhana mujhko
Apne rishte ki nazakt ka bharm rakh lena
Main to Aashiq hun deewana na banana mujhko.

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