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कविताओं के बीच एक पन्ना ये भी ......

रात के साढ़े तीन बजे है । मुझे नींद नही आ रही है। दो दिन पहले ससुराल से आई बिटिया वापिस ससुराल चली गयी है । उसकी याद करके बार बार आँखे नम हो रही है । माँ की गोद में एक बच्चे की तरह लिपट जाना उसे कितना अच्छा लगता है । फ़िर से बचपन में लौट जाना कितना आल्हादित करता है उसे । रहती होगी ससुराल में बड़ी बनकर, मेरे आँचल में तो वो एक छोटी सी गुडिया बन जाती है। बार बार मेरे कंधे पर सिर रखकर आँखे बंदकर उस पल का पूरा आनंद लेना चाहती है , न जाने फ़िर कब ये सुख मिल पायेगा। उसके ससुराल जाने के दो दिन पहले से ही एक मन कुछ अंदर से उदास हो जाता है।

विदाई के समय मेरा कोई समान तो नही रह गया -कहते हुए पूरे घर का चक्कर यूँ लगाया जैसे पूरा घर आँखों में कैद कर साथ लेजाना चाहती हो । मै उसके पीछे खडी हूँ और उसकी इस समय की मनोभावना को पूरी तरह समझ रही हूँ। अपने रूम की हरेक छोटी चीज को यूँ नजर भरकर देखा मानो हर चीज को नजर में समेत कर ले जाना चाहती हो । अपने आसुओं को रोकना बहुत अच्छा आता है तुम्हे .काश! मुझे आता ।

बिटिया तुम्हारा कोई समान तो नही रहा यहाँ , लेकिन हर समान में तुम्हारी यादें रह गयी है यहाँ । मै daily समान को clean कर के वहीं रख देती हूँ। साथ तुम्हारे कोमल स्पर्श को फील करती हूँ ।

ये कैसा दस्तूर है अचानक से बिटिया दूर और इतनी पराई हो जाती है । जब मै अपनी माँ से इतनी दूर हुई थी तब इस पीड़ा को गहराई से महसूस नही कर पायी । लेकिन आज मै माँ बनकर बिटिया के दूर होने के दर्द को महसूस कर रही हूँ ।

तुम्हारे रूम में ही तुम्हारी study table पर ये सब लिख रही हूँ । घर में सब सो रहे है । अगर मै बहर की light जलाऊंगी तो सब disturb हो जायेंगे । इसलिए मेरे आसुओं से भीगे face को कोई देख न ले मै धीरे से तुम्हारे रूम में आ गयी हूँ । तुम्हारी हरेक चीज में तुम्हे देख रही हूँ । तुम वहां सो रही होगी । मैं यहाँ बहुत व्यथित हूँ । शायद इसलिए की मै एक माँ हूँ । वो माँ जिसे अपने बच्चों से बढ़ कर इस दुनिया में कुछ नही । जिसकी दुनिया उसके बच्चों से शुरू होती है और बच्चों पर ही ख़तम होती है।

मै थोड़ी देर और यहाँ बैठुंगी । तुम्हारे रूम को निहारूंगी । पता नही नींद कब आएगी , आएगी भी या नही ...........

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