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Showing posts from November, 2008

बेनाम

मुंबई में घटित आतंकवाद के इस नए रूप ने सबको हिला कर रख दिया है। यम् के रूप में आए आतंकवादी .... मासूमों की भयानक मोतें ...आख़िर क्या साबित करना चाहते हैवे... इंसान की इंसान से इतनी नफरत .....नफरतों का सैलाब हो जैसे..... सबके मन में एक रोष है ...एक रंज है...पूरी की पूरी व्यवस्था चरमरा चुकी है ....कब जीवन फिर से पटरी पर आएगा ... कुछ पता नही......मेरा salaam है .... उनको jinhone जीवन बलिदान दिया..... रूह पर थे जो कभी कुछ जख्म, नजर अब सारे आने लगे है। तुफा है कि ये है बवंडर , शकल यम् की ये पाने लगा है । जंगल की आग कुछ यूँ धधकी , तन क्या मन भी झुलसने लगा है। ठहर जाओ ए तेज हवाओं ! लहू उभर कर अब आने लगा है॥ पूनम अग्रवाल ....

कविताओं के बीच एक पन्ना ये भी ......

रात के साढ़े तीन बजे है । मुझे नींद नही आ रही है। दो दिन पहले ससुराल से आई बिटिया वापिस ससुराल चली गयी है । उसकी याद करके बार बार आँखे नम हो रही है । माँ की गोद में एक बच्चे की तरह लिपट जाना उसे कितना अच्छा लगता है । फ़िर से बचपन में लौट जाना कितना आल्हादित करता है उसे । रहती होगी ससुराल में बड़ी बनकर, मेरे आँचल में तो वो एक छोटी सी गुडिया बन जाती है। बार बार मेरे कंधे पर सिर रखकर आँखे बंदकर उस पल का पूरा आनंद लेना चाहती है , न जाने फ़िर कब ये सुख मिल पायेगा। उसके ससुराल जाने के दो दिन पहले से ही एक मन कुछ अंदर से उदास हो जाता है। विदाई के समय मेरा कोई समान तो नही रह गया -कहते हुए पूरे घर का चक्कर यूँ लगाया जैसे पूरा घर आँखों में कैद कर साथ लेजाना चाहती हो । मै उसके पीछे खडी हूँ और उसकी इस समय की मनोभावना को पूरी तरह समझ रही हूँ। अपने रूम की हरेक छोटी चीज को यूँ नजर भरकर देखा मानो हर चीज को नजर में समेत कर ले जाना चाहती हो । अपने आसुओं को रोकना बहुत अच्छा आता है तुम्हे .काश! मुझे आता । बिटिया तुम्हारा कोई समान तो नही रहा यहाँ , लेकिन हर समान में तुम्हारी यादें रह गयी है यहाँ । मै daily स