मुंबई में घटित आतंकवाद के इस नए रूप ने सबको हिला कर रख दिया है। यम् के रूप में आए आतंकवादी .... मासूमों की भयानक मोतें ...आख़िर क्या साबित करना चाहते हैवे... इंसान की इंसान से इतनी नफरत .....नफरतों का सैलाब हो जैसे..... सबके मन में एक रोष है ...एक रंज है...पूरी की पूरी व्यवस्था चरमरा चुकी है ....कब जीवन फिर से पटरी पर आएगा ... कुछ पता नही......मेरा salaam है .... उनको jinhone जीवन बलिदान दिया..... रूह पर थे जो कभी कुछ जख्म, नजर अब सारे आने लगे है। तुफा है कि ये है बवंडर , शकल यम् की ये पाने लगा है । जंगल की आग कुछ यूँ धधकी , तन क्या मन भी झुलसने लगा है। ठहर जाओ ए तेज हवाओं ! लहू उभर कर अब आने लगा है॥ पूनम अग्रवाल ....
छोड़ देते हैं मस्तियों को, नादानियों को नहीं देखते उन सपनों को जो सूरज और चांद को छूने का दिलासा दिलाते हैं दबा ...