बात ये बहुत पुरानी है, एक बहन की ये कहानी है। मांजी सब उनको कहते थे, प्रेमाश्रु सदा उनके बहते थे। कमर थी उनकी झुकी हुई, हिम्मत नही थी रुकी हुई। पूरा दिन काम वो करती थी, कभी आह नही भरती थी । सिर्फ़ काम और काम ही था, थकने का तो नाम न था। रसोई जब वो बनाती थी , भीनी सी सुगंध आती थी । चूल्हे पर खाना बनता था, धुए की महक से रमता था। कुछ अंगारे निकालती हर रोज, पकाती थी उस पर चाय कुछ सोच। शायद भाई कहीं से आ जाए, तुंरत पेश करुँगी चाय। थकान भाई की उतर जायेगी, गले में चाय ज्यूँ फिसल जायेगी। नही था वो प्याला चाय का , वो तो थी एक आशा। बुझी सी आँखों में झूलती , कभी आशा कभी निराशा। बहन के प्यार की न कभी, कोई बता सका परिभाषा..... पूनम अग्रवाल .....