मेघों में फंसे सूरज, तुम हो कहाँ? सोये से अलसाए से, रश्मी को समेटे हुए, तुम हो कहाँ ? मेरे उजालों से पूछों - मेरी तपिश से पूंछो- सूरज हूँ पर सूरज सा दीखता नहीं तो क्या ! पिंघली सी तपन मेरी दिखती है तो क्या ! मैं हूँ वही, मैं हूँ वहीं , मैं था जहाँ ___ पूनम अग्रवाल ......
छोड़ देते हैं मस्तियों को, नादानियों को नहीं देखते उन सपनों को जो सूरज और चांद को छूने का दिलासा दिलाते हैं दबा ...