जिस कश्ती पर हुए सवार , हवाओं ने रुख को बदल लिया। गुनगुनाने की चाहत क्या की, गीतों ने सुर को बदल लिया। संवरना चाहा जब भी कभी, आइने ने खुद को बदल लिया। मुस्कुराने की बात क्या की, मुखोंटों ने मुख को बदल लिया... पूनम अग्रवाल....
छोड़ देते हैं मस्तियों को, नादानियों को नहीं देखते उन सपनों को जो सूरज और चांद को छूने का दिलासा दिलाते हैं दबा ...