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ना छेड़ो मेरे गम को इस तरह , एक चिंगारी अभी बाक़ी है। जख्म तो भर गया है मगर, ये दाग अभी बाक़ी है। फूलों का काँटों से वास्ता इतना, जब तक ये पराग अभी बाक़ी है न कर गम ए दोस्त!बहारों का, जख्म पुराने है दर्द अभी बाक़ी है। ज़िन्दगी का जाम तड़क कर टूट गया, मौत की हंसी अभी बाक़ी है। ए दोस्त !दामन भरा रहे तेरा फूले से, यही दुआ अकेली अभी बाकी है........ पूनम अग्रवाल.......

सरकता रहा चांद चुपके से रात भर

सरकता रहा चांद चुपके से रात भर, फिजा में खामोशी सी बिखर गई, गजब सा सुकून चांद देता रहा रात भर। तार छिड़ भी गए -नग्मे बिखर भी गए, महकता रहा आंगन चुपके से रात भर। सरकता रहा चांद चुपके से रात भर..... बिंदिया चमक भी गयी ,पायल खनक भी गयी, बिखरता रहा गजरा चुपके से रात भर। चूड़ी खनक भी गयी ,अरमान मचल भी गए, लहराता रहा आँचल चुपके से रात भर। सरकता रहा चांद चुपके से रात भर...... पलके उठ भी गयी,पलके गिर भी गयी , बहकता रहा जाम चुपके से रात भर। दिए जल भी गए ,दिए बुझ भी गए, सिमटता रहा तिमिर चुपके से रात भर। सरकता रहा चांद चुपके से रात भर..... पूनम अग्रवाल ....

सजल जल

नभ में जल है, जल में जल है, थल में जल है। ये कैसी विडम्बना ? तरसे मानव जल को है। भीगा तन है,भीगा मन है, सूखे होंठ -गला रुन्धा सा। हर नयन मगर सजल है...... पूनम अग्रवाल

नवदीप

शीशे का एक महल तुम्हारा, शीशे का एक महल हमारा. फिर पत्थर क्यों हाथों में आओ मिल बैठें , ना घात करें । प्रीत भरें बीतें लम्हों को , नवदीप जलाकर याद करें ......

जीवन क्या है ?

जीवन क्या है ? एक मेला है। दुःख -सुख का एक रेला है । दुःख सागर , सुख सपना है। दुःख - सागर के तुम बनना तुम सफल गोताखोर . डूब गए तो न नयन भिगोना, भीग गये तो न करना मलाल। मोका मिल है ,मोती चुराना सागर के। फिर बढाना हाथ अपना . सर्वप्रथम जो थामेगा हाथ तुम्हारा , समझना वही है हकदार , मोती की गागर के... जीवन क्या है? एक मेला है। दुःख-सुख का एक रेला है। सुख सपना जब होगा साकार , किसी चीज का ना होगा आकार । सपने को न तुम सच समझ लेना भीड़ से दबे -सबको न अपना समझ लेना। सपना बड़ा सुहाता है , झूम -झूमकर लुभाता है। सपने तो पर सपने है , ये कभी ना अपने है। सपने में सब लगते है अपने , धूप भी कोमल लगती है । पतझड़ भी सावन लगता है, नींद गहरी और गहरी हुई जाती है। नींद से जागोगे ,तो जानोगे तुम , ये तो थे सिर्फ सपने ,मीठे सपने........ - पूनम अग्रवाल

मिलन

चांद खड़ा है द्वारे पर , तारों की बारात लिए । अम्बर ने अपने आंगन में , सजा लिए हैं अरबों दिए। खिल उठी चांदनी शर्मा कर , मेघों का घूँघट किये । माथे पर हैचांद की बिंदिया , दिल में हैं अरमान लिए। माला थामे नयन झुकाकर , सिमटी है शृंगार किये। गीतों को गूंजित कर डाला, अधरों को चुप चाप सिये । सितारों की माला गुथ डाली, चल पडी मिलन है आज प्रिये ! पूनम की है रात प्रिये, मिलन है आज प्रिये !!!!..... -पूनम अग्रवाल

गवाही

अम्बर के आंगन मे तारों के झुरमुट में, क्या चांद गवाही देगा ? कहाँ छुपी है माँ मेरी ? अश्रु के सैलाब में , नींद की खुमार में, क्या स्वप्न गवाही देगा? कहाँ छुपी है माँ मेरी ?