घास काटकर नहर के पास, कुछ उदास-उदास सा चला जा रहा था गरीबदास। कि क्या हुआ अनायास... दिखाई दिए सामने दो मुस्टंडे, जो अमीरों के लिए शरीफ़ थे पर ग़रीबों के लिए गुंडे। उनके हाथों में तेल पिए हुए डंडे थे, और खोपड़ियों में हज़ारों हथकण्डे थे। बोले- ओ गरीबदास सुन ! अच्छा मुहूरत है अच्छा सगुन। हम तेरे दलिद्दर मिटाएंगे, ग़रीबी की रेखा से ऊपर उठाएंगे। गरीबदास डर गया बिचारा, उसने मन में विचारा- इन्होंने गांव की कितनी ही लड़कियां उठा दीं। कितने ही लोग ज़िंदगी से उठा दिए अब मुझे उठाने वाले हैं, आज तो भगवान ही रखवाले हैं। -हां भई गरीबदास चुप क्यों है ? देख मामला यों है कि हम तुझे ग़रीबी की रेखा से ऊपर उठाएंगे, रेखा नीचे रह जाएगी तुझे ऊपर ले जाएंगे। गरीबदास ने पूछा- कित्ता ऊपर ? -एक बित्ता ऊपर पर घबराता क्यों है ये तो ख़ुशी की बात है, वरना क्या तू और क्या तेरी औक़ात है ? जानता है ग़रीबी की रेखा ? -हजूर हमने तो कभी नहीं देखा। -हं हं, पगले, घास पहले नीचे रख ले। गरीबदास ! तू आदमी मज़े का है, देख सामने देख वो ग़रीबी की रेखा है। -कहां है हजूर ? -वो कहां है हजूर ? -वो देख, सामने बहुत दूर। -सामने तो बंजर धर...
छोड़ देते हैं मस्तियों को, नादानियों को नहीं देखते उन सपनों को जो सूरज और चांद को छूने का दिलासा दिलाते हैं दबा ...