सच हम नहीं सच तुम नहीं सच है सतत संघर्ष ही । संघर्ष से हट कर जिए तो क्या जिए हम या कि तुम। जो नत हुआ वह मृत हुआ ज्यों वृन्त से झर कर कुसुम। जो पंथ भूल रुका नहीं, जो हार देखा झुका नहीं, जिसने मरण को भी लिया हो जीत, है जीवन वही। सच हम नहीं सच तुम नहीं। ऐसा करो जिससे न प्राणों में कहीं जड़ता रहे। जो है जहाँ चुपचाप अपने आपसे लड़ता रहे। जो भी परिस्थितियाँ मिलें, काँटें चुभें, कलियाँ खिलें, टूटे नहीं इन्सान, बस सन्देश यौवन का यही। सच हम नहीं सच तुम नहीं। हमने रचा आओ हमीं अब तोड़ दें इस प्यार को। यह क्या मिलन, मिलना वही जो मोड़ दे मँझधार को। जो साथ कूलों के चले, जो ढाल पाते ही ढले, यह ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी जो सिर्फ़ पानी-सी बही। सच हम नहीं सच तुम नहीं। अपने हृदय का सत्य अपने आप हमको खोजना। अपने नयन का नीर अपने आप हमको पोंछना। आकाश सुख देगा नहीं, धरती पसीजी है कहीं, हर एक राही को भटक कर ही दिशा मिलती रही सच हम नहीं सच तुम नहीं। बेकार है मुस्कान से ढकना हृदय की खिन्नता। आदर्श हो सकती नहीं तन और मन की भिन्नता। जब तक बंधी है चेतना, जब तक प्रणय दुख से घना, तब तक न मानूँगा कभी इस राह को ही मैं सही...