मैं मलिन नदी , शकुंतला की अठखेलियों को करीब से देखा है मैंने , 'भारत' ने जिससे पाया अपना नाम उस भरत को स्पर्श किया है मैंने । तब वेग था मेरे मन में , धैर्य था मेरे तन में । समय बीता - आज में त्रस्त हूँ , तन मन से ध्वस्त हूँ। सूख गया है तन मेरा, टूट गया है मन मेरा । मेरे उस और बसे लोग आज भी इस और आते है । रोंद कर सभी मुझे निकल जाते है । उनके लिए मैं कुछ भी नहीं , सिर्फ एक "शोर्ट कट " हूँ । पूनम अग्रवाल ...
छोड़ देते हैं मस्तियों को, नादानियों को नहीं देखते उन सपनों को जो सूरज और चांद को छूने का दिलासा दिलाते हैं दबा ...