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Showing posts from July, 2009

एक नजारा

ट्रेन के डस्टबिन के पास मैले -कुचेले फटेहाल वस्त्रों से अपना तन ढकती , गोद में स्केलेटन सा बिलखता बच्चा थामे , डालती है अपना हाथ डस्टबिन में वो । कचरे के बीच बचे -खुचे खाने से भरी एक थाली ले आती है चमक उसकी आँखों में। इसपर भी चखती अपनी उंगली से बची-खुची दही-रायता। फ़िर भरती है बिनी हुई कटोरियों में वोही झूठन .... शायद घर पर बीमार बूढी माँ के लिए है वो सब । रोते बच्चे को सूखे स्तन से लगाती है जबरन । बटोरकर आशा ट्रेन से उतर जाती है अगले पड़ाव पर । वाह रे भारत देश ! भारत की ये भारती ! पूनम अग्रवाल ......