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Showing posts from May, 2008

भगवान् ( ईश्वर )

रोंदी मिट्टी का ढेर नहीं मैं , हवा के झोंके से उड जाऊँ । भ से भूमी हूँ मैं सम्पूर्ण - बादल का एक टुकडा नहीं मैं, बरस जाऊँ किसी आंगन में। ग से गगन हूँ मैं अनंत- मंद पवन का झोंका नहीं मैं, उड़ा लाऊ कुछ तिनके ,धूल । व से वायु हूँ मैं प्राण -रक्षक - टिमटिमाते दिए की लों नही मैं, बुझ जाऊँ दिए की बाती संग अ से अग्न हूँ मैं दाहक - झर झर बहती धार नहीं मैं, समा जाऊ किसी सरिता में. न से नीर हूँ मैं जीवन - दायक- सम्पूर्ण स्राश्ती के हम हैं विधाता , मिलकर बनते हैं 'भगवान्'- रूष्ट एक भी हो जाए फ़िर , मानव का नहीं है कल्याण । पंचतत्व हैं हम कहलाते ' हमसे हुवा सबका निर्माण। सर्वत्र हमारी पूजा होती। सम्पूर्ण जगत में हम विद्यमान। पूनम अग्रवाल-