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Showing posts from September, 2007

हाँ ! कविता हूँ मैं ....

हाँ ! कविता हूँ मैं - कवि की मासूम सी कल्पना हूँ मैं , कलम से कागज़ पर उकेरी अल्पना हूँ मैं । कहीँ किसी अंतर्मन की गहराई हूँ मैं , कहीँ उसी अंतर्द्वंद की परछाई हूँ मैं । हाँ !कविता हूँ मैं - कहीँ आँधियों से टकराता दिया हूँ मैं , कहीँ बोझिल सा धड़कता जिया हूँ मैं । हाँ !कविता हूँ मैं- कहीँ श्रृंगार के रस मे लिपटी हूँ मैं, कहीँ शर्माई सहमी सी सिमटी हूँ मैं । हाँ! कविता हूँ मैं- कहीँ विरह रस मे भीगा गीत हूँ मैं, कहीँ बंद कमल मे भ्रमर का प्रीत हूँ मैं। हाँ! कविता हूँ मैं- कहीँ चांद - तारों कीं उड़ान हूँ मैं , कहीँ मरुभूमि मे बिखरती मुस्कान हूँ मैं। हाँ ! कविता हूँ मैं- कवि कि मासूम सी कल्पना हूँ मैं, कलम से कागज़ पर उकेरी अल्पना हूँ मैं.... पूनम अग्रवाल