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ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आये है?

माँ मेरा मन बात ये समझ ना पाये है, ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये है? पहले पापा मुन्ना मुन्ना कहते आते थे, टॉफियाँ खिलोने साथ में भी लाते थे। गोदी में उठा के खूब खिलखिलाते थे, हाथ फेर सर पे प्यार भी जताते थे। पर ना जाने आज क्यूँ वो चुप हो गए, लगता है की खूब गहरी नींद सो गए। नींद से पापा उठो मुन्ना बुलाये है, ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये है? फौजी अंकलों की भीड़ घर क्यूँ आई है, पापा का सामान साथ में क्यूँ लाई है। साथ में क्यूँ लाई है वो मेडलों के हार , आंख में आंसू क्यूँ सबके आते बार बार। चाचा मामा दादा दादी चीखते है क्यूँ, माँ मेरी बता वो सर को पीटते है क्यूँ। गाँव क्यूँ शहीद पापा को बताये है, ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये है? माँ तू क्यों है इतना रोती ये बता मुझे, होश क्यूँ हर पल है खोती ये बता मुझे। माथे का सिन्दूर क्यूँ है दादी पोछती, लाल चूड़ी हाथ में क्यूँ बुआ तोडती। काले मोतियों की माला क्यूँ उतारी है, क्या तुझे माँ हो गया समझना भारी है। माँ तेरा ये रूप मुझे ना सुहाये है, ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये है? पापा कहाँ है जा रहे अब ये बताओ माँ, चुपचाप से आंसू बहा के यूँ सताओ न...

प्रेम (Prem) - अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ (Ayodhya Singh Upadhyay 'Hariaudh')

उमंगों भरा दिल किसी का न टूटे। पलट जायँ पासे मगर जुग न फूटे। कभी संग निज संगियों का न छूटे। हमारा चलन घर हमारा न लूटे। सगों से सगे कर न लेवें किनारा। फटे दिल मगर घर न फूटे हमारा।1। कभी प्रेम के रंग में हम रँगे थे। उसी के अछूते रसों में पगे थे। उसी के लगाये हितों में लगे थे। सभी के हितू थे सभी के सगे थे। रहे प्यार वाले उसी के सहारे। बसा प्रेम ही आँख में था हमारे।2। रहे उन दिनों फूल जैसा खिले हम। रहे सब तरह के सुखों से हिले हम। मिलाये, रहे दूध जल सा मिले हम। बनाते न थे हित हवाई किले हम। लबालब भरा रंगतों में निराला। छलकता हुआ प्रेम का था पियाला।3। रहे बादलों सा बरस रंग लाते। रहे चाँद जैसी छटाएँ दिखाते। छिड़क चाँदनी हम रहे चैन पाते। सदा ही रहे सोत रस का बहाते। कलाएँ दिखा कर कसाले किये कम। उँजाला अँधेरे घरों के रहे हम।4। रहे प्यार का रंग ऐसा चढ़ाते। न थे जानवर जानवरपन दिखाते। लहू-प्यास-वाले, लहू पी न पाते। बड़े तेजश्-पंजे न पंजे चलाते। न था बाघपन बाघ को याद होता। पड़े सामने साँपपन साँप खोता।5। कसर रख न जीकी कसर थी निकलती। बला डाल कर के बला थी न टलती। मसल दिल किसी का, न थी, दाल गलती। बुरे फल...

Mohabbat, Chahat,

Koi Tukra De Chahat Ko Tu hans kar Seh Layna Mohabbat Ki Tabiyat Main Zabardasti Nahi hoti !!!.

Naseeb Urdu Poetry

Teri tawaja Shaied Mere Naseeb Main Leki he Na Thi Chorh Diya Tujhay yaad Karna... Khud Ko Bewafa Samajh Kar.

Sadest Urdu Poetry 2016

Mujh Se Aab Shairy Nahi Hoti Mujh Ko Lafzon Ne Maar dala Hay.

Kam Bakht Ishq Aur Mohabbat

Faaslay barh Gaye ! Aur Kam-Bakht Mohabbat Bhi

Kambakht Ishq

Jis Nagar Bhi Jao Qissay Hain Kambakht Sil K Koi Lay Ki Ro Raha hay Koi De K Ro Raha Hay.