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चलना हमारा काम है ( Chalna Hamara Kaam Hai ) - शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (Shivmangal Singh 'Suman')

गति प्रबल पैरों में भरी  फिर क्यों रहूं दर दर खडा  जब आज मेरे सामने  है रास्ता इतना पडा  जब तक न मंजिल पा सकूँ,  तब तक मुझे न विराम है,  चलना हमारा काम है।  कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया  कुछ बोझ अपना बँट गया  अच्छा हुआ, तुम मिल गई  कुछ रास्ता ही कट गया  क्या राह में परिचय कहूँ,  राही हमारा नाम है,  चलना हमारा काम है।  जीवन अपूर्ण लिए हुए  पाता कभी खोता कभी  आशा निराशा से घिरा,  हँसता कभी रोता कभी  गति-मति न हो अवरूद्ध,  इसका ध्यान आठो याम है,  चलना हमारा काम है।  इस विशद विश्व-प्रहार में  किसको नहीं बहना पडा  सुख-दुख हमारी ही तरह,  किसको नहीं सहना पडा  फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,  मुझ पर विधाता वाम है,  चलना हमारा काम है।  मैं पूर्णता की खोज में  दर-दर भटकता ही रहा  प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ  रोडा अटकता ही रहा  निराशा क्यों मुझे?  जीवन इसी का नाम है,  चलना हमारा काम है।  साथ में चलते रहे  कुछ बीच ही से फिर गए...

दिवंगत पिता के प्रति ( Divangat Pita Ke Prati ) - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwardayal Saxena)

सूरज के साथ-साथ सन्ध्या के मंत्र डूब जाते थे, घंटी बजती थी अनाथ आश्रम में भूखे भटकते बच्चों के लौट आने की, दूर-दूर तक फैले खेतों पर, धुएँ में लिपटे गाँव पर, वर्षा से भीगी कच्ची डगर पर, जाने कैसा रहस्य भरा करुण अन्धकार फैल जाता था, और ऐसे में आवाज़ आती थी पिता तुम्हारे पुकारने की, मेरा नाम उस अंधियारे में बज उठता था, तुम्हारे स्वरों में। मैं अब भी हूँ अब भी है यह रोता हुआ अन्धकार चारों ओर लेकिन कहाँ है तुम्हारी आवाज़ जो मेरा नाम भरकर इसे अविकल स्वरों में बजा दे। 'धक्का देकर किसी को आगे जाना पाप है' अत: तुम भीड़ से अलग हो गए। 'महत्वाकांक्षा ही सब दुखों का मूल है' इसलिए तुम जहाँ थे वहीं बैठ गए। 'संतोष परम धन है' मानकर तुमने सब कुछ लुट जाने दिया। पिता! इन मूल्यों ने तो तुम्हें अनाथ, निराश्रित और विपन्न ही बनाया, तुमसे नहीं, मुझसे कहती है, मृत्यु के समय तुम्हारे निस्तेज मुख पर पड़ती यह क्रूर दारूण छाया। 'सादगी से रहूँगा' तुमने सोचा था अत: हर उत्सव में तुम द्वार पर खड़े रहे। 'झूठ नहीं बोलूँगा' तुमने व्रत लिया था अत:हर गोष्ठी में तुम चित्र से जड़े रहे। ...

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Ma Khu Darta Wail Sirf Shondo Na Maza Wakhla Ta Khu Warta Shaikha Tolla Zana Lamda Karri Da,

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Kala Kala Me Da Wakht Dasi Majbor Krri Da Kargha Bache Ta Wama Che Shaeen Ye.

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बदनाम रहे बटमार ( Badnam Rahe Batmar ) - गोपाल सिंह नेपाली ( Gopal Singh Nepali )

बदनाम रहे बटमार मगर, घर तो रखवालों ने लूटा मेरी दुल्हन-सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटा दो दिन के रैन बसेरे की,  हर चीज़ चुराई जाती है दीपक तो अपना जलता है,  पर रात पराई होती है गलियों से नैन चुरा लाए तस्वीर किसी के मुखड़े की रह गए खुले भर रात नयन, दिल तो दिलदारों नर लूटा मेरी दुल्हन-सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटा शबनम-सा बचपन उतरा था, तारों की गुमसुम गलियों में थी प्रीति-रीति की समझ नहीं,  तो प्यार मिला था छलियों से बचपन का संग जब छूटा तो नयनों से मिले सजल नयना नादान नये दो नयनों को, नित नये बजारों ने लूटा मेरी दुल्हन-सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटा हर शाम गगन में चिपका दी,  तारों के अक्षर की पाती किसने लिक्खी, किसको लिक्खी,  देखी तो पढ़ी नहीं जाती कहते हैं यह तो किस्मत है धरती के रहनेवालों की पर मेरी किस्मत को तो इन, ठंडे अंगारों ने लूटा मेरी दुल्हन-सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटा अब जाना कितना अंतर है,  नज़रों के झुकने-झुकने में हो जाती है कितनी दूरी,  थोड़ा-सी रुकने-रुकने में मुझ पर जग की जो नज़र झुकी वह ढाल बनी मेरे आगे मैंने जब नज...