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एक तमन्ना और सही

प्यार का ये बुखार क्यूँ चढ़ने लगा है, उतर गया था नशा तो क्यूँ बढ़ने लगा है, मासूमियत उसके चेहरे की क्यूँ सताने लगी है, आज फिर से इतना प्यारा कोई क्यूँ लगने लगा है. रातों मे उसकी हसीं याद  क्यूँ आने लगी है, सदियों से फैली ये उदासी चेहरे से जाने लगी है, इतना प्यारा भला कोई हो भी सकता है, खुशियाँ शायद फिर से मुझे गले लगाने लगी है. आँखों मे उसके अपनी तस्वीर सजाना चाहता हूँ, खुद को उसके मुस्कान की वजह बनाना चाहता हूँ, होंठो से भले नाम लिया हो मेरा अनजाने मे, मे बस उसी एक पल मे खो जाना चाहता हूँ. उसकी हर एक अदा प्यारी लगने लगी है, दिलो दिमाग पर एक खुमारी चढ़ने लगी है, देख के उसको सारी थकान उतर सी जाती है, उसको हर एक पल देखने की बेकरारी बढनें लगी है. उसकी शरारतें मेरे दिल को बहुत ही भाती हैं, आहटें उसकी सुनकर ये हवाएं थम सी जाती है, भीड़ मे भी वो ही वो क्यूँ दिखें मुझे, आँखें हो बंद तो दबे पाँव ख़्वाबों मे चली आती है. खुशबू उसकी मेरे मन को महका रही है, नजाकत उसकी मेरे धड़कनों को बहका रही है, जुल्फें जो बिखरा ली हैं उसने अपने कंधों पर, जैसे चाँद को बादलों मे से ले के आ रही है. तेरी अदाओं म...

इस रात की गुमनामियों मे कहीं खो ना जाऊं मै

इस रात की गुमनामियों मे कहीं खो ना जाऊं मै , यूँ ख्वाब ना दिखा कहीं ताउम्र सो ना जाऊं मै, कुछ कतरे तेरे प्यार के दिल की गहराइयों मे जा बसे, इन्हें हवा ना दे तेरी याद की कहीं किसी और का हो ना पाऊं मे. जीने का मुझको हक तो दे अपनी यादें समेट ले, या गुजार जिंदगी मेरे साथ आ मेरी बाहों मे लेट ले, तनहाइयों मे भी खुश हूँ मै तू अपने सर ना कोई इलज़ाम ले, बस देखने दे मुझे भी रौशनी यूँ ना अपने साए से लपेट ले ....

Hai Naman Unko- A Tribute to Real Indian Heroes. Dr Kumar Vishwas

है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर इस जगत मैं शौर्य की जीवित कहानी हो गए हैं. है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय जो धरा पर गिर पड़े, पर आसमानी हो गए हैं पिता, जिनके रक्त ने उज्जवल किया कुल-वंश-माथा माँ, वही जो दूध से इस देश जकी राज टोल आई बहन, जिसने सावनों मैं भर लिया पतझड़ स्वयं ही हाथ ना उलझें कलाई से जो राखी खोल लाई बेटियाँ जो लोरियों मैं भी प्रभाती सुन रही थीं "पिता' तुम पर गर्व है चुपचाप जा कर बोल आई प्रिया, जिसकी चूड़ियों मैं सितारे से टूटते हैं मांग का सिन्दूर देकर जो सितारे मोल लाई है नमन उस देहरी को जहां तुम खेले कन्हैया घर तुम्हारे, परम तप की राजधानी हो गए हैं है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गए हैं हमने भेजे हैं सिकंदर सर झुकाए, मात खाए हमसे भिड़ते हैं वे, जिनका मन, धरा से भर गया है नरक मैं तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी उनके माथे पर हमारी ठोकरों का ही बयान है सिंह के दांतों से गिनती सीखने वालों के आगे शीश देने की कला मैं क्या अजब है क्या नया है जूझना यमराज से आदत पुराणी है हमारी उत्तरों की खोज मैं फिर एक नचिकेता गया...

मैं मुहब्बत हूँ ज़बानों में न बाँटों मुझ को

"इतनी नफ़रत भरे लहजे में न बोलो मुझसे , एक एहसास हूँ, एहसास से काटो मुझ को , सिर्फ लिखने के है औज़ार ये हिंदी उर्दू , मैं मुहब्बत हूँ ज़बानों में न बाँटों मुझ को....." --------------------------------------------------------- पास रुकता भी नहीं,दिल से गुज़रता भी नहीं , वैसे लम्हा कोई जाया नहीं लगता मुझ को  गाँव छोड़ा था कभी और अब यादें छूटीं , अब कोई शहर पराया नहीं लगता मुझ को .... ---------------------------------------------------------- दर्द का साज़ दे रहा हूँ तुम्हे. दिल के सब राज़ दे रहा हूँ तुम्हे. ये ग़ज़ल, गीत सब बहाने है. मैं तो आवाज़ दे रहा हूँ तुमहे.......

New Hindi Poem By Abhishek Bajaj- क्यूँ ढूंढ़ता उस ख्वाब को

क्यूँ ढूंढ़ता उस ख्वाब को,के कौन जाने किधर गया, जो साथ है उसे पास रख जो गुज़र गया सो गुज़र गया, अपना समझ जिसे खुश हुआ अहसास समझ कर भूल जा, बस नशा था थोडा प्यार का सुबह हुई तो उतर गया, ... उस शख्स का भी क्या कसूर था जो पास होकर भी दूर था, ये तो ज़माने का दस्तूर है वो भी जमाने संग बदल गया, ना रखना दिल मे यादों को आँखों को ना रोने देना, झोंका था एक हवा का,आया और छु के निकल गया.... - Abhishek Bajaj

Dr. Kumar Vishwas New Hindi Poem- Kuch Chote Sapnoo ke Badle

कुछ छोटे सपनो के बदले , बड़ी नींद का सौदा करने , निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगर ठहरेंगे ! वही प्यास के अनगढ़ मोती ,वही धूप की सुर्ख कहानी , वही आंख में घुटकर मरती ,आंसू की खुद्दार जवानी , ... हर मोहरे की मूक विवशता ,चौसर के खाने क्या जाने हार जीत तय करती है वे , आज कौन से घर ठहरेंगे....! निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगर ठहरेंगे ! कुछ पलकों में बंद चांदनी ,कुछ होठों में कैद तराने , मंजिल के गुमनाम भरोसे ,सपनो के लाचार बहाने , जिनकी जिद के आगे सूरज, मोरपंख से छाया मांगे , उन के भी दुर्दम्य इरादे , वीणा के स्वर पर ठहरेंगे . निकल पडे हैं पांव अभागे ,जाने कौन डगर ठहरेंगे .....!!  - Dr. Kumar Vishwas

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस(Netaji Subhashchandra Bose) - गोपालप्रसाद व्यास (Gopalprasad Vyas)

है समय नदी की बाढ़ कि जिसमें सब बह जाया करते हैं। है समय बड़ा तूफ़ान प्रबल पर्वत झुक जाया करते हैं ।। अक्सर दुनियाँ के लोग समय में चक्कर खाया करते हैं। लेकिन कुछ ऐसे होते हैं, इतिहास बनाया करते हैं ।। यह उसी वीर इतिहास-पुरुष की अनुपम अमर कहानी है। जो रक्त कणों से लिखी गई,जिसकी जयहिन्द निशानी है।। प्यारा सुभाष, नेता सुभाष, भारत भू का उजियारा था । पैदा होते ही गणिकों ने जिसका भविष्य लिख डाला था।। यह वीर चक्रवर्ती होगा , या त्यागी होगा सन्यासी। जिसके गौरव को याद रखेंगे, युग-युग तक भारतवासी।। सो वही वीर नौकरशाही ने,पकड़ जेल में डाला था । पर क्रुद्ध केहरी कभी नहीं फंदे में टिकने वाला था।। बाँधे जाते इंसान,कभी तूफ़ान न बाँधे जाते हैं। काया ज़रूर बाँधी जाती,बाँधे न इरादे जाते हैं।। वह दृढ़-प्रतिज्ञ सेनानी था,जो मौका पाकर निकल गया। वह पारा था अंग्रेज़ों की मुट्ठी में आकर फिसल गया।। जिस तरह धूर्त दुर्योधन से,बचकर यदुनन्दन आए थे। जिस तरह शिवाजी ने मुग़लों के,पहरेदार छकाए थे ।। बस उसी तरह यह तोड़ पींजरा , तोते-सा बेदाग़ गया। जनवरी माह सन् इकतालिस,मच गया शोर वह भाग गया।। ...