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नेताजी सुभाषचन्द्र बोस(Netaji Subhashchandra Bose) - गोपालप्रसाद व्यास (Gopalprasad Vyas)

है समय नदी की बाढ़ कि जिसमें सब बह जाया करते हैं। है समय बड़ा तूफ़ान प्रबल पर्वत झुक जाया करते हैं ।। अक्सर दुनियाँ के लोग समय में चक्कर खाया करते हैं। लेकिन कुछ ऐसे होते हैं, इतिहास बनाया करते हैं ।। यह उसी वीर इतिहास-पुरुष की अनुपम अमर कहानी है। जो रक्त कणों से लिखी गई,जिसकी जयहिन्द निशानी है।। प्यारा सुभाष, नेता सुभाष, भारत भू का उजियारा था । पैदा होते ही गणिकों ने जिसका भविष्य लिख डाला था।। यह वीर चक्रवर्ती होगा , या त्यागी होगा सन्यासी। जिसके गौरव को याद रखेंगे, युग-युग तक भारतवासी।। सो वही वीर नौकरशाही ने,पकड़ जेल में डाला था । पर क्रुद्ध केहरी कभी नहीं फंदे में टिकने वाला था।। बाँधे जाते इंसान,कभी तूफ़ान न बाँधे जाते हैं। काया ज़रूर बाँधी जाती,बाँधे न इरादे जाते हैं।। वह दृढ़-प्रतिज्ञ सेनानी था,जो मौका पाकर निकल गया। वह पारा था अंग्रेज़ों की मुट्ठी में आकर फिसल गया।। जिस तरह धूर्त दुर्योधन से,बचकर यदुनन्दन आए थे। जिस तरह शिवाजी ने मुग़लों के,पहरेदार छकाए थे ।। बस उसी तरह यह तोड़ पींजरा , तोते-सा बेदाग़ गया। जनवरी माह सन् इकतालिस,मच गया शोर वह भाग गया।। ...

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ (Aise Main Man Bahlata Hoon) - हरिवंश राय 'बच्चन' (Harivansh Rai 'Bachchan')

सोचा करता बैठ अकेले, गत जीवन के सुख-दुख झेले, दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ! ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! नहीं खोजने जाता मरहम, होकर अपने प्रति अति निर्मम, उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ! ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! आह निकल मुख से जाती है, मानव की ही तो छाती है, लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ! ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

गली में आज चाँद निकला ( Gali Mein Aaj Chand Nikla) - पुष्पा पटेल( Pushpa Patel)

तुम आए जो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला जाने कितने दिनों के बाद, गली में आज चाँद निकला ये नैना बिन काजल तरसे, बारह महीने बादल बरसे सुनी रब ने मेरी फ़रियाद, गली में आज चाँद निकला आज की रात जो मैं सो जाती, खुलती आँख सुबह हो जाती मैं तो हो जाती बस बर्बाद, गली में आज चाँद निकला मैं ने तुमको आते देखा, अपनी जान को जाते देखा जाने फिर क्या हुआ नहीं याद, गली में आज चाँद निकला

हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के (Hum Laye Hain fan Se Kashti Nikal Ke) - प्रदीप (Pradeep)

पासे सभी उलट गए दुश्मन की चाल के अक्षर सभी पलट गए भारत के भाल के मंजिल पे आया मुल्क हर बला को टाल के सदियों के बाद फिर उड़े बादल गुलाल के हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के ... देखो कहीं बरबाद न होवे ये बगीचा इसको हृदय के खून से बापू ने है सींचा रक्खा है ये चिराग शहीदों ने बाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के... दुनिया के दांव पेंच से रखना न वास्ता मंजिल तुम्हारी दूर है लंबा है रास्ता भटका न दे कोई तुम्हें धोके मे डाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के... एटम बमों के जोर पे ऐंठी है ये दुनिया बारूद के इक ढेर पे बैठी है ये दुनिया तुम हर कदम उठाना जरा देखभाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के... आराम की तुम भूल भुलय्या में न भूलो सपनों के हिंडोलों मे मगन हो के न झुलो अब वक़्त आ गया मेरे हंसते हुए फूलो उठो छलांग मार के आकाश को छू लो तुम गाड़ दो गगन में तिरंगा ...

सच हम नहीं सच तुम नहीं( Sach Hum Nahin Sach Tum Nahin) - जगदीश गुप्त (Jagdish Gupt)

सच हम नहीं सच तुम नहीं सच है सतत संघर्ष ही । संघर्ष से हट कर जिए तो क्या जिए हम या कि तुम। जो नत हुआ वह मृत हुआ ज्यों वृन्त से झर कर कुसुम। जो पंथ भूल रुका नहीं, जो हार देखा झुका नहीं, जिसने मरण को भी लिया हो जीत, है जीवन वही। सच हम नहीं सच तुम नहीं। ऐसा करो जिससे न प्राणों में कहीं जड़ता रहे। जो है जहाँ चुपचाप अपने आपसे लड़ता रहे। जो भी परिस्थितियाँ मिलें, काँटें चुभें, कलियाँ खिलें, टूटे नहीं इन्सान, बस सन्देश यौवन का यही। सच हम नहीं सच तुम नहीं। हमने रचा आओ हमीं अब तोड़ दें इस प्यार को। यह क्या मिलन, मिलना वही जो मोड़ दे मँझधार को। जो साथ कूलों के चले, जो ढाल पाते ही ढले, यह ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी जो सिर्फ़ पानी-सी बही। सच हम नहीं सच तुम नहीं। अपने हृदय का सत्य अपने आप हमको खोजना। अपने नयन का नीर अपने आप हमको पोंछना। आकाश सुख देगा नहीं, धरती पसीजी है कहीं, हर एक राही को भटक कर ही दिशा मिलती रही सच हम नहीं सच तुम नहीं। बेकार है मुस्कान से ढकना हृदय की खिन्नता। आदर्श हो सकती नहीं तन और मन की भिन्नता। जब तक बंधी है चेतना, जब तक प्रणय दुख से घना, तब तक न मानूँगा कभी इस राह को ही मैं सही...

दिल के ज़ज्बातों को होंठो पे ठिकाना न मिला

दिल के ज़ज्बातों को होंठो पे ठिकाना न मिला, हर नए ज़ख्मों के बीच मुस्कुराने का बहाना ना मिला, मेरे ही शहर के हर शख्स से मिला मै अजनबी की तरह, आज दोस्तों की महफ़िल मे भी मुझे कोई दोस्त पुराना ना मिला, हँसते उसके चेहरे को मै भुलाता तो भुलाता कैसे, गम की तो लकीरें भी नहीं फिर उन्हें हांथों से मिटाता कैसे, कितना ढूंढा दर दर जा के पर कँही वो ज़माना ना मिला, आज दोस्तों की महफ़िल मे भी मुझे कोई दोस्त पुराना ना मिला, तन्हाई को मेरा हाथ थमा के तू अपनी मंजिल को चला गया, मोहब्बत मे खोना किसे कहते हैं चलो इतना तो सीखा गया, जिस जाम मे न दिखे तेरा चेहरा मयखाने मे वो पैमाना ना मिला, आज दोस्तों की महफ़िल मे भी मुझे कोई दोस्त पुराना ना मिला…..

अंदाज़ तुम्हारे जैसा था

बारिश की तरह बूंदों ने जब दस्तक दी दरवाजे पर महसूस  हुआ तुम आये हो .. अंदाज़ तुम्हारे जैसा था हवा के हलके झोके ने जब आहात की खिड़की पर महसूस  हुआ  तुम  चलते हो ... अंदाज़ तुम्हारे जैसा था मैंने बूंदों को अपने हाथ पे टपकाया तो एक सर्द सा क्यों एहसास हुआ.... की लफ्ज़ तुम्हारे जैसा था मैं तनहा चला जब बारिश मई एक झोके ने मेरा साथ दिया मई समझा तुम हो साथ मेरे एहसास तुम्हारे जैसा था फिर रुक गई वो बारिश भी और रही न बाकि आहात भी मई समझा मुझे तुम छोड़ गई... अंदाज़ तुम्हारे जैसा था. बारिश की तरह बूंदों ने जब दस्तक दी दरवाजे पर महसूस हुआ तुम आये हो... अंदाज़  तुम्हारे जैसा था.!!!!!