Skip to main content

Posts

शर्माने लगे है .........

जिन फूलों की खुशबू पर किताबों का हक़ था , वही फूल भवरों को अब भरमाने लगे है । छिपे थे जो चेहरे मुखोटों के पीछे , वही चेहरे नया रूप अब दिखाने लगे है । पलकों पर थम चुकी थी जिन अश्कों की माला , नर्म कलियों पर ओस बन अब बहकाने लगे है। जिन साजों पर जम चुकी थी परत धूल की , वही साज नया गीत अब गुनगुनाने लगे है । जिनके लिए कभी वो सजाते थे ख़ुद को, वही आईने देख उन्हें अब शर्माने लगे है..... पूनम अग्रवाल.......

कहर कोसी का "सजल जल"

नभ में जल है, थल में जल है, जल में जल है। कैसी ये विडंबना ? तरसे मानव जल को है। भीगा तन है, भीगा मन है, सूखे होंठ - गला रुंधा सा। हर नयन मगर सजल है..... पूनम अग्रवाल....
बिखर गया कोई मेघ गगन पर, नई-नई सूरत ढली ....... बिखर गया कोई दर्पण धरा पर, सूरत वही दिशा बदली ॥

स्वप्न

स्वप्न यहाँ पलकों पर , सजा करते है। साकार हो जाता है , जब स्वप्न कोई। दिन बदल जाते है, रातें बदल जाती है। बिखर जाता है, जब स्वप्न कोई । तब भी---- दिन बदल जाते है, रातें बदल जाती है। अश्क उभर आते है, दोनों ही सूरतों में। फर्क बस है इतना- कभी ये सुख के होते है । कभी ये दुःख के होते है। स्वप्न यहाँ पलकों पर, सजा करते है ..... पूनम अग्रवाल ....

' निर्वाण '

सर्वत्र हो तुम , सर्वस्व भी तुम। रचना हो तुम , रचनाकार भी तुम। सर्जन हो तुम, स्रजन्हारभी तुम। मारक हो तुम , तारक भी तुम। स्रष्टी हो तुम, श्रष्टा भी तुम। दृष्टी हो तुम, दृष्टा भी तुम। मुक्ती हो तुम , 'निर्वाण' भी तुम।

सावन का सूरज

मेघों में फंसे सूरज, तुम हो कहाँ? सोये से अलसाए से, रश्मी को समेटे हुए, तुम हो कहाँ ? मेरे उजालों से पूछों - मेरी तपिश से पूंछो- सूरज हूँ पर सूरज सा दीखता नहीं तो क्या ! पिंघली सी तपन मेरी दिखती है तो क्या ! मैं हूँ वही, मैं हूँ वहीं , मैं था जहाँ ___ पूनम अग्रवाल ......

प्रेम

गगन मांगा सूरज तो मिलना ही था। सागर माँगा मोती तो गिनना ही था। बगीचा माँगा फूल तो खिलना ही था। जग माँगा 'प्रेम' तो मिलना ही था॥ poonam agrawal